शनिवार, 4 जून 2011

दाग अच्छे हैं

आजकल भ्रष्टाचार को लेकर धरने, आन्दोलन. सत्याग्रहों का जो दौर चला है और इन्हें जो व्यापक जनसमर्थन मिला है वो काबिले तारीफ है लेकिन पता नही क्यों उनके बारे मैं जब भी सोचता हूँ तो ग़ालिब की कही पंक्तियाँ याद आ जाती हैं कि........
"हमको मालूम है ज़न्नत कि हक़ीकत लेकिन
दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है...."

ऐसा मैं यूं ही नहीं कह रहा और आप भी इसे ऊल-जुलूल मत समझिएगा | इस बात को एक आन्दोलनकारी कि नज़र से नहीं बल्कि एक मेंगो पीपल कि नज़र से सोचिये कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस आन्दोलन के आयोजन में ही पता नही कितना भ्रष्टाचार फैलाया जायेगा.........कहीं टेंट-शामियाने लगाने में तो कहीं कूलर पंखे लगाने में, कहीं खाने-पीने के रेले में तो कहीं बिजली के झमेले में......ये तो थी अन्दर कि बात अब ज़रा बाहर कि आबोहवा का जाएजा लिया जाये तो वहां भी हालत कुछ खास ठीक नहीं होंगे.....कहीं गाड़ियों कि पार्किंग में तो कहीं खोमचे वालों कि रेहड़ियों पर, कहीं पुलिस वाले तो कहीं ट्रेफिक वाले.........तो कुल मिला के ज़नाब इस देश में तो कुछ अच्छा करने में भी बुरे कि गुंजाईश बनी ही रहती है या यो कहें कि बुरा अपने आप हो ही जाता है..........लेकिन फिर हम ये सोच के संतोष कर लेते हैं कि कुछ अच्छा करने में अगर दाग लगते हैं तो दाग अच्छे हैं ......

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