गुरुवार, 2 जून 2011

मानव होने का सम्मान खोतीं "सम्मान हत्याएँ"...........

हरियाणा के रोहतक जिले के रुड़की गांव में एक युवक द्वारा सम्मान के नाम पर 12 साल की एक बच्ची की कथित तौर पर हत्या..........जोड़े का शव बरामद, सम्मान के नाम पर हत्या की आशंका........ना जाने कितनी ख़बरों से पटे रहते हैं हमारे देश में अखबारों के पृष्ठ | जी हाँ हमारा देश............भारत..........जिसे विश्व के मानचित्र पर प्रेम का अगुआ, सहनशील, सहिष्णु और न जाने कितने अतिशयोक्तिपूर्ण अलंकारों से संबोधित किया जाता है | परन्तु क्या हम इन अलंकारों के हकदार हैं? क्या हम वास्तव में प्रेमी, सहनशील और सहिष्णु हैं? ये प्रश्न कई देशप्रेमिओं को शायद मेरे विरुद्ध जाने के लिए एक कारण दें | परन्तु क्या हमारा देश इन अलंकारों को खोने की राह पर प्रशस्त नही हो रहा..............इसी देश में बाबा कबीरदास ने कहा था----"ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए"..........क्या आज इस पंक्ति का कोई अर्थ रह गया है......

हमारे देश में प्रेम को और प्रेम करने वालों को सम्मान कि दृष्टि से देखने के बजाय अपने निजी सम्मान और स्वार्थ के साथ जोड़ कर देखने वालों की एक जमात सी तैयार हो गयी है या यों कहे की प्रेम के ठेकेदारों की.........ये ठेकेदार यह तय करते हैं की किसे प्रेम करना है किसे नहीं......और अगर प्रेम करना है तो किससे करना है.........प्रेम करने वालो ने अगर इनकी बात मानी तो ये ठेकेदार शायद उनके प्रेम की इमारत खड़ी होने दें, लेकिन अगर नही मानी तो मानो उन्होंने किसी सरकारी ज़मीन पर अपना आशियाना खड़ा कर दिया हो ..........ऐसे में ये ठेकेदार तैयार हो जाते हैं उनकी प्रेम की स्वरचित इमारत पर अपना सम्मान रुपी बुलडोजर चलाने के लिए.........अरे सरकार तो केवल मकान तोड़ती है लेकिन ये ठेकेदार तो जैसे स्वयं को भगवान ठेकेदार समझते हैं जो प्रेम रुपी मकान के साथ-साथ उसमे रहने वालो को भी नही बख्श्ते............और फिर अगली सुबह अखबार में एक छोटे से कॉलम में खबर आती है "सम्मान के नाम पर प्रेमी जोड़े की हत्या |" और हम लोग जो अपने को कथित तौर परका सदस्य मानते हैं, भी कम नहीं हैं जो समाज के रीति रिवाजों की दुहाई देते हुए कहते हैं कि-----आज कल कि पीढ़ी को ये सब करने कि ज़रूरत ही क्या है? ये है हमारी "सो काल्ड सिविल सोसाइटी"  का दोगलापन............आखिर क्यों कोई इन प्रेम के ठेकेदारों को ये नहीं समझाता कि "इंसान कि ज़िन्दगी किसी कि ड्योढ़ी पर रखी लालटेन नहीं जिसे जब चाहा जला दिया और जब चाहा बुझा दिया |" 

एक तरफ हम राधा कृष्ण के प्रेम का बखान करते नहीं थकते और दूसरी तरफ प्रेम करने वालों कि बुराई मानो ऐसे करते हैं जैसे उन्होंने कोई महाभनायक अपराध कर दिया हो.......क्या यह हमारे स्वार्थी चरित्र को नही दर्शाता........मुझे लगता है अगर कृष्ण भगवान न होते तो आज के समाज में उन्हें गाली देने वालों कि कमी नहीं होती.........अरे मूर्ख लोगो बाहर निकलो अपने इस मानसिक दिवालियेपन से और देखो हम क्या कर रहे हैं | जिसे हमने कभी देखा नहीं.......जिसका न कोई रूप है न रंग.........उसको पत्थरों में मानकर भी पूजते हैं और जो हमारे सामने जीते जागते खड़े हैं उन्हें पत्थरों से मारते हैं और वो भी सिर्फ इसलिए कि उन्होंने स्वविवेक से प्रेम किया..........क्या अब हमे प्रेम करने के लिए भी कोई अधिनियम बनाना पड़ेगा जो यह तय करेगा कि प्रेम कैसे किया जाये............मेरी विनती है उन महानुभावों से जो प्रेम को अपराध की संज्ञा देते हैं, यदि हमे वास्तव में प्रेम का अगुआ बनना है तो कृपया प्रेम को प्रेम ही रहने दे उसे अपने दरवाजे पर गड़े हुए खूंटे से न बांधें जिस पर जब जी चाहा चाबुक चला दिया ............

2 टिप्‍पणियां:

  1. aashish samaj ke ye rules regulations hami ne banaye they....jis samay banaye they..us samay ke liye sahi they...ab ke liye nahi....

    samay badal gaya..par hamne us rudiwadi soch ko nahi choda..aur uske naam pe jaane qurbaan kartey jaa rhe hai....

    dar pyaar ya samaj ke bharsht hone se nahi.....darr sirf badlav se hai

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  2. हमने नहीं मैडम.........कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगो ने.........

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