रविवार, 5 जून 2011

बेचारी जनता

अरे! ये क्या हो गया? कल तक तो सब कुछ ठीक था, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली का तापमान इतना बढ़ गया ? अच्छा.........अब समझ आया, लगता है एक बार फिर दाग अच्छे हैं वाली पंक्ति को चरितार्थ किया गया है | लेकिन क्या सच में ये दाग अच्छा था या भारतीय संविधान पर लगा एक ऐसा धब्बा है जिसे आने वाले कई वर्षो तक भी नहीं मिटाया जा सकेगा और मुझे तो लगता है ये धब्बा पड़ा भी है तो उन जगहों पर जहाँ अधिकारों और कर्तव्यों की बात की गयी है | तो क्या वास्तव में भारतीय जनता के साथ छल किया गया है, उसे ठगा गया है और अगर हाँ तो आखिर ये छल किया किसने.......बाबा ने ! अरे नहीं वो तो भारतीय जनता को एकजुट कर उन्हें बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाना सिखा रहे थे | तो फिर किसने किया ये छल.......पुलिस ने ! नहीं भई नहीं वो तो बेचारी कल तक व्यवस्था बनाने में जुटी थी जिससे कोई अनहोनी न हो जाये | तो राजनीतिक दलों ने ! नहीं राजनीतिक दलों का तो स्वयं का कोई अस्तित्व ही नहीं होता तो वो कैसे कर सकते हैं | फिर तो ये छल ज़रूर इस देश के सर्वसम्माननीय नेताओ ने ही किया होगा..........हाँ वही होंगे | आखिर इस आन्दोलन से भला किसी और को क्या हानि हो सकती थी सिवाए बड़े-बड़े उद्योगपतियों और राजनेताओं के |

क्या कहा, मैं किसकी बात कर रहा हूँ? अरे भई अभी तक आप नहीं समझे ! मैं तो उस आन्दोलन की बात कर रहा हूँ जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली के रामलीला मैदान में किया जा रहा था और आज की रात जिसे बड़ी ही निर्दयता से कुचल दिया गया | जी हाँ निर्दयता से और इस दमन चक्र ने एक बार फिर भारतीय जनता को यह आभास करा दिया होगा की वह मूर्ख है | अब ये तो मत पूछियेगा की भारतीय जनता मूर्ख क्यों है | क्या कहा, पूछेंगे | चलिए पूछ ही रहे हैं तो मैं बताये देता हूँ, मूर्ख इसलिए क्योकि ये अभी तक समझ रही है कि हम स्वतंत्र है और संविधान ने हमे कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं जो हमारी स्वतंत्रता कि रक्षा करेंगे | लेकिन कौन बताये इन सोये हुए लोगो को कि हम स्वतंत्र नहीं हुए हैं बस हमारे शासक बदले हैं, हम तो अभी भी वही के वही हैं | वही बेबस लाचार लोग जो बने ही हैं कुछ मुठ्ठी भर लोगो की अधीनता को स्वीकार करने के लिए | और एक मज़े की बात और बताता हूँ आप लोगों को, वो ये की अब हम अपने शासक स्वयं चुनते हैं वो भी इतने जोशोखरोश के साथ जैसे पता नहीं कौन सा महान कार्य करने जा रहे हैं | 

खैर छोड़िये ये तो पुरानी बातें हैं, हम तो ताज़ा समाचार के बारे में बात कर रहे थे और वो ये की भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के नेतृत्व में चलाये जा रहे सत्याग्रह आन्दोलन को आज रात निर्दयता से कुचल दिया गया | आखिर क्यों हुआ ऐसा, क्या बाबा के समर्थक (क्षमा कीजियेगा मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मुझे ये नहीं पता कि वहाँ जो लोग इकठ्ठा हुए थे वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध थे या बाबा के समर्थक क्योंकि मुझे नहीं लगता की वे सभी कहीं न कहीं इस भ्रष्टाचारी तंत्र का हिस्सा न रहे हों) कोई हिंसात्मक कार्य कर रहे थे या कुछ ऐसा जिससे शहर की कानून-व्यवस्था को कोई खतरा था | वैसे तो हमने यही सुना था की ये आन्दोलन अहिंसात्मक होगा | लगता है हमारे राजनेताओं को ये हिंसात्मक लगा क्योंकि इससे उन्हें मानसिक कष्ट जो पहुँच रहा था, और गाँधी जी के शब्दों में वो भी हिंसा है जो किसी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करे और मुझे लग रहा है कि सबसे ज्यादा कष्ट पहुँच रहा था हमारे देश की राजनीति के दिग्गी राजा को | आप लोग ये तो जानते ही होंगे की दिग्गी राजा कौन हैं और नहीं भी जानते तो बस इतना जान लेना ही काफी है की ये भी कोई हैं | मैंने कुछ लोगो से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि इस आन्दोलन ने उन्हें इतना गहरा आघात पहुँचाया कि बेचारे मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए हैं इसीलिए वे क्या बोल रहे हैं उन्हें भी नही पता |

खैर जो हुआ सो हुआ, असली मज़ा तो अब आएगा क्योंकि अब शुरू होगा आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर | अब सारे राजनीतिक दल इसके खिलाफ इस तरह एकजुट होंगे जैसे वे सभी सगे भाई हों या उनमें धरम-वीर की सी मित्रता हो | लेकिन मैं आपको एक बात याद दिला दूं ये एकजुटता इसलिए नहीं होगी कि आन्दोलन को दबा दिया गया है ये तो इसलिए होगी कि इस की आड़ में सतारूढ़ दल को नीचे गिराया जाये और हो भी क्यों नहीं ये तो हमारे देश की एक मानी हुई विशेषता है कि अगर कोई एक ऊपर चढ़ रहा हो तो बाकि लोग उसे और ऊपर चढाने कि बजाये नीचे ही खींचते हैं | खींचो भई खींचो........जोर लगा के हईशा............ इसी खीचंखिचाई में ये देश का तीयां-पांचा करते हैं | इसी बहाने एक बार फिर भारत कि जनता को दो पाटों के बीच पीस डालो और जो आटा बने उससे सेंको अपनी राजनीतिक रोटियां | जनता मरती है तो मर जाये हमे क्या, उसकी तो आदत है मरना लेकिन हम जिंदा रहने चाहिए क्योंकि अगर हमे कुछ हो गया तो बेचारे स्विस बैंकों का क्या होगा, उस जनता का क्या होगा जो वहां के बैंकों में काम कर रही है आखिर उसकी रोजी रोटी भी तो चलानी है हमें..............बोलो वसुधैव कुटुम्बकम की जय.................

मेरे हिसाब से तो इस तरह के आंदोलनों से कुछ नहीं होने वाला, अगर आप कुछ करना ही चाहते हैं तो अपने आप को बदलिए | मत दीजिये रिश्वत, मत कीजिये कोई ऐसा काम जिससे आपको किसी के आगे गिडगिडाना पड़े या रिश्वत देने की नौबत आये और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो मत रोना रोईये कि देश में भ्रष्टाचार बहुत है, सारे नेता चोर हैं | ये सही है...........पहले खुद चोरी करो फिर उस चोरी का हिस्सा देकर दूसरों को चोर बनाओ और बाद में चीख-चिल्लाहट मचाओ चोर-चोर....... पकड़ो-पकड़ो......अपने को बदलते नहीं, आये बड़े देश को बदलने वाले..........अब दाग अच्छे हैं वाला डायेलोग छोड़ो, बहुत हो गया | कहीं ऐसा न हो कि यही कहते-कहते इतने सारे दाग लग जायें कि बाद में चाहने से भी ख़त्म न हो............फिर पहनना ज़िन्दगी भर दाग वाले कपड़े और आने वाली पीढ़ी को भी पहनना ..........इसीलिए कह रहा हूँ अब भी वक़्त है सुधर जाओ और बोलो जागो भारत जागो..............

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