सोमवार, 5 अगस्त 2013

पिछले कुछ दिनों, महीनों, सालों से,
सीखचों में सिमटी हुई सी ज़िन्दगी जी रहा हूँ मैं,

ना कोई रास्ता ना कोई सफ़र,

जद्दोजहद कर रहा हूँ, कि आजाद हो सकूं,
उड़ सकूँ उस खुले असमान में,
जहाँ मुलाकात होती है कुछ उम्मीदों से,
जो जीना सिखाती हैं, लड़ना सिखाती हैं,
लेकिन,
उड़ने की कोशिश करते ही टकरा जाता हूँ,
उन दीवारों से,
जो घेरे हुए हैं मुझे,
उलझ कर रह जाता हूँ उन्ही सीखचों के बीच,
जिनमे,
सिमटी हुयी सी ज़िन्दगी जी रहा हूँ मैं,
फिर भी ज़िन्दा हूँ मैं।।