मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

तुम्हारा ना होना और मैं..


बीती तीन रातों से नींद का आना कम हो गया है। क्यों, पता नहीं या शायद तुमने आना ज्यादा कर दिया है । तुम नहीं हो न यहाँ, मेरे पास। अब ये मत कहना की पास नहीं तो क्या हुआ साथ तो हूँ। मैं कोई फिल्म का अभिनेता नहीं जिसके लिए सिर्फ तुम्हारा साथ होना काफी है। मैं पास होना चाहता हूँ सिर्फ ख्यालों में नहीं, हकीकत में भी। तुम्हारे पास ना होने का ख्याल दिल को बोझिल और दिमाग को सुन्न किए दे रहा है। बीते दो दिनों से सबके बीच होते हुए भी नहीं हूँ मैं। खुद में खुद का होना भी संशय में डाल रहा है। बात सिर्फ तुम्हारे ना हों तक ही सीमित नहीं है। तुम्हारे ना होने से ना विचारों में पूर्णता है न व्यवहार में सहजता। इस पूर्णता और सहजता के लिए भी तुम्हारा होना जरूरी है।

पन्द्रह दिन ही हुये हैं अभी तुम्हें गए और वापस आने में एक जोड़ा पन्द्रह दिन बाकी हैं। तीस दिन नहीं लिखना चाहता, बहुत दूर लगने लगती हो। पन्द्रह दिन तक ही रखना चाहता हूँ। पता है कोई फर्क नहीं पड़ने वाला इससे लेकिन अपनी तसल्ली के लिए। इस बीच तुम्हारे फोन का आना और ज्यादा परेशान किए देता है बिना तुम्हें देखे तुम्हारी आवाज़ सुनना अच्छा नहीं लगता। तुम्हारी हँसी मुझे चिढ़ाती है क्योंकि वो ज्यादा पास है तुम्हारे, मैं नहीं। तुम्हारे जाने को मैं तुम होकर नहीं सोचना चाहता की खुश हो जाऊँ लेकिन तुम्हें मैं भी नहीं बनने देना चाहता कि तुम उदास हो जाओ। पता है तुम भी आना चाहती हो यहीं इसी जगह जहां मैं और तुम एक हो जाना चाहते हैं लेकिन मैं ही नहीं आने दे रहा। क्या करूँ, जरूरी है ये भी। हमारे बीच जो है उसे और ज्यादा मजबूत बनाने का शायद यह भी एक तरीका है। थोड़ा परेशान करने वाला है लेकिन ठीक है। तुम्हारी सहजता और मेरे अक्खड़पन को यही समय तो एक करता है और शायद अपने-अपने में बढ़ता भी है। लड़ने के लिए नहीं जुडने के लिए। दोनों को एक दूसरे की ये बातें पसंद हैं तो रहने देते हैं ऐसे ही।

लेकिन ज्यादा इंतज़ार नहीं करना चाहता। आदत नहीं है ना। शाम सूरज ढलने से सुबह होने तक और फिर अगली शाम होने के बीच सब कुछ है यहाँ, बस कुछ नहीं है तो तुम, शायद इसलिए कुछ भी नहीं है। तुम ज़रूरी हो मेरी सोच के लिए, तुम ज़रूरी हो मेरी सुबहों को लिए, तुम ज़रूरी हो मेरी शामों के लिए, तुम ज़रूरी हो मेरे होने के लिए। अमिताभ तो नहीं हूँ लेकिन बाग़बान तो हमारा भी है इसलिए लाइने भी वही हैं हमारे लिए, तुम हो हम हैं, हम हैं तो सब कुछ वरना कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। अभी तो बस एक शब्द---इंतज़ार।

तुम्हारा ना होना कुछ यूं किए देता है,
जैसे चिरागों में रोशनी का कम होना,
जरूरी है तुम्हारा होना,
रोशनी के लिए, ज़िंदगी के लिए।

तुम्हारा ना होना बिन शब्दों की किताब की तरह है,
एकदम कोरी,
बिलकुल सफ़ेद,
ज़रूरी है तुम्हारा होना, यहीं मेरे पास,
शब्दों के लिए, रंगों के लिए।

तुम नहीं हो, मेरा होना भी ना होना है,
ना औरों में, ना अपने में,
निःशब्द, निष्प्राण, निर्जीव सा किए देता है,
तुम्हारा ना होना,
ज़रूरी है तुम्हारा होना,
जीने के लिए, मेरे होने के लिए। 

1 टिप्पणी:

  1. यह अपने आप में एक मुकम्मल याद है, इंतेज़ार की। कुछ भी और कैसे भी करके हम अपने उन खाली पलों को कह नहीं पाते.. बस महसूस करते रह जाने के बाद जो बचा रह गया, वही यहाँ दिख जाता है कभी-कभी।

    बस अगर हो सके तो इस ख़त को उनके लैटरबॉक्स तक पहुँचा दो।

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