सोमवार, 17 सितंबर 2012

होना, ना होना...


ग़र मैं कल ना भी रहूँ
मेरे न होने का दुःख ना करना
क्योंकि,
मैं सदैव रहूँगा |
किसी की उजली यादों में,
किसी की अनकही बातों में,
किसी की चहचहाती हंसी में,
किसी की छोटी सी ख़ुशी में,
किसी की आँख से छलके आंसू में,
आती-जाती हर साँसों में
किसी के दिल की धड़कन में,
धागे के अटूट बंधन में,
किसी की कुमकुम की लालिमा में,
किसी के काजल की कालिमा में,
सावन में बरसते पानी में,
दादी-नानी की कहानी में,
माँ की मीठी सी लोरी में,
चंदा मामा की कटोरी में,
आँचल की शीतलता में,
बच्चों की चंचलता में,
गुड्डे-गुड़िया के खेलों में
तीज-त्यौहार के मेलों में
कुछ खट्टे-मीठे सपनों में,
कुछ औरों कुछ अपनों में,

मैं रहूँगा,
किसी के मस्तक का तेज़ बनकर,
किसी की आँखों का नूर बनकर,
किसी के चौड़ते सीने का गर्व, तो
किसी के चेहरे का गुरुर बनकर |
किसी की ख़ामोशी में आवाज़ बनकर,
किसी नए जीवन का आगाज़ बनकर,
किसी के होंठों की मुस्कान बनकर,
किसी के जीवन का अभिमान बनकर,
किसी के जीवन में फिर से आऊंगा,
राहत से सराबोर विश्राम बनकर |
अंधकार में उजला प्रकाश बनकर,
मैं पास नहीं साथ रहूँगा,
किसी के जीवन का विश्वास बनकर |
इसलिए,
मेरे न होने पर आँसू न बहाना,
मेरी तस्वीर को फूलों से न सजाना,
गर करना होगा कुछ मेरे लिए,
तो यही करना,
मुझे अपनी यादों से ना मिटाना, क्योंकि
मैं यही हूँ ,
ढूंढना मुझे मैं ज़रूर मिलूँगा,
मैं यहीं हूँ,
आप ही के आसपास कहीं हूँ ||

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